लाइव साइंस की रिपोर्ट के मुताबिक, अर्गाइल रॉक संरचना हीरे के लिए एक असामान्य स्थान है, क्योंकि यह महाद्वीप के किनारे पर स्थित है। यहां हीरे आमतौर पर किम्बरलाइट रॉक संरचनाओं में पाए जाते हैं लेकिन अर्गाइल संरचना में एक प्रकार की ज्वालामुखीय चट्टान होती है जिसे ओलिवाइन लैम्प्रोइट कहा जाता है। शोधकर्ताओं ने 1979 में साइट की खोज के तुरंत बाद ही आर्गीले में चट्टानों की तिथि निर्धारित कर दी थी। शुरुआती परिणामों ने उनकी आयु 1.1 से 1.2 बिलियन वर्ष के बीच बताई थी लेकिन पिछले साल एक नए अध्ययन से पता चला कि चट्टानें 1.3 बिलियन वर्ष पुरानी हैं।
नूना महाद्वीप के टूटने से मिली खदान
नई रिसर्च से पता चलता है कि अर्गाइल संरचना की उत्पत्ति सुपरकॉन्टिनेंट नूना के टूटने की शुरुआत में हुई थी, जिससे इस बात के सुराग मिलते हैं कि हीरे कैसे बने और उनमें से इतने सारे गुलाबी क्यों हैं। गुलाबी हीरे विशिष्ट ताप और दबाव की स्थितियों से पैदा होते हैं जो टेक्टोनिक प्लेटों के टकराने पर उत्पन्न होते हैं। इन टकरावों का विशुद्ध बल पहले से मौजूद हीरों के क्रिस्टल जाल को इस तरह से मोड़ सकता है कि वे गुलाबी रंग के अलग शेड्स में बदल जाएं।
इस सुपरकॉन्टिनेंट नूना का निर्माण तब हुआ जब लगभग 1.8 बिलियन साल पहले पृथ्वी की पपड़ी के दो हिस्से आपस में टकराए। माना जाता है कि जिस क्षेत्र में वे आपस में टकराए थे, वह वर्तमान अर्गाइल गठन के साथ ओवरलैप होता है, जिससे पता चलता है कि टक्कर ने अर्गीले के गुलाबी हीरे को जन्म दिया। हालांकि उस समय हीरे पपड़ी के भीतर गहरे दबे हुए होंगे। वैज्ञानिकों का मानना है कि 500 मिलियन साल बाद जब टेक्टोनिक प्लेट्स एक दूसरे से दूर जाने के कारण नूना टूटने लगा तो हीरे ले जाने वाली चट्टानें पृथ्वी की सतह पर आ गईं। उन चट्टानों में भूरे रंग के हीरे भी प्रचुर मात्रा में थे।