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Royal pillars in Amreli: अमरेली जिले के सावरकुंडला तालुका और मेवासा गांव में शाही काल के स्तंभ आज भी खड़े हैं. ये स्तंभ पारंपरिक सम्मान और परंपराओं का प्रतीक हैं, जो उस समय के शासन और संस्कृति को दर्शाते हैं.

शाही काल के स्तंभ
अमरेली और सौराष्ट्र के कई इलाकों में आज भी शाही काल के स्तंभ मौजूद हैं. ये स्तंभ उस समय की सम्मान की परंपरा को दर्शाते हैं और आज भी अमरेली जिले के सावरकुंडला तालुका के ग्रामीण क्षेत्रों में इनका अस्तित्व देखा जा सकता है. इन स्तंभों को पारंपरिक स्मृति का प्रतीक माना जाता है.
स्तंभों का ऐतिहासिक महत्व
मंगलूभाई खुमान के अनुसार, खांभी की परंपरा एक बहुत पुरानी परंपरा है. यह परंपरा जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों को याद रखने के लिए विकसित हुई थी. इन स्तंभों के विभिन्न प्रकार होते हैं, जैसे खंभा, सागो और पालियो. खासतौर पर, जब किसी व्यक्ति की आकस्मिक मृत्यु होती थी, तो इन स्तंभों के जरिए उनकी यादें सहेजी जाती थीं. वहीं, युद्ध में शहीद होने वाले व्यक्तियों के लिए शहीद स्तंभ बनाए जाते थे, जो सम्मान और श्रद्धा का प्रतीक होते थे.
मूल परंपरा और वंशावलि
मंगलूभाई खुमान बताते हैं कि उनके पूर्वज मेथला और हीरावाला से थे, और बाद में मेवासा में एक राज्य व्यवस्था स्थापित हुई. उस समय, यहां पर पारंपरिक स्तंभ बनाए जाते थे, जो आज भी खड़े हैं. भगवान बापू ने मेवासा में बसने के बाद राजवंश की परंपरा के अनुसार इन स्तंभों का निर्माण किया था. उनके बाद, भगवान बापू के बेटे जीवा बापू, फिर भीम बापू और आपा बापू ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया. लोकतंत्र के बाद, इस परंपरा का समापन हुआ.
मेवासा गांव और शाही रियासत
अमरेली जिले के सावरकुंडला तालुका में स्थित मेवासा गांव शाही काल में एक महत्वपूर्ण रियासत था. इस गांव से ही शासन चलता था, और आज भी उस समय के कई स्तंभ यहां देखे जा सकते हैं. इन स्तंभों पर गांवों की संख्या और अन्य विवरण जैसे मेवासा में कितने गांव थे, उकेरे जाते थे. ये स्तंभ न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे उस समय की शासन व्यवस्था और जीवनशैली को भी प्रदर्शित करते हैं.
खंभी में उकेरे गए प्रतीक
मंगलूभाई खुमान ने बताया कि खंभी में किसी विशेष रुचिकर विषय को उकेरा जाता था. खंभी पर सूर्य और चंद्रमा के प्रतीक बने होते थे. उनके दादाजी को बाज़ पालने का शौक था, इसलिए खंभी में बाज़ का चित्र भी उकेरा गया था. इसका मतलब है कि जो चीज़ राजा को प्रिय होती थी, वह खंभी पर उकेरी जाती थी. ये खंभी आज भी पारंपरिक संस्कृति और शाही परंपराओं का प्रतीक बने हुए हैं.