सिंधु जल संधि को ठंडे बस्ते में डालने से भारत को एक बड़ा मौका मिला है. इससे भारत जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा, रतले और पकाल दुल जैसे हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स को तेजी से आगे बढ़ा सकता है. अब इन प्रोजेक्ट्स को सिर्फ ऊर्जा के स्रोत के रूप में नहीं, बल्कि पाकिस्तान पर रणनीतिक दबाव बनाने के साधन के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
पाकिस्तान इस कदम से साफ तौर पर घबराया हुआ नजर आ रहा है. पाकिस्तान सरकार ने इसे ‘युद्ध का ऐलान’ बताया है. वहीं पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के नेता बिलावल भुट्टो ने धमकी दी है कि ‘सिंधु नदी में या तो हमारा पानी बहेगा या उनका (भारत का) खून बहेगा.’
पाकिस्तान पर दिखने लगा भारत की सख्ती का असर
सरकार से जुड़े शीर्ष सूत्रों का कहना है कि भारत के इस कदम का मनोवैज्ञानिक असर पाकिस्तान में पहले से दिखने लगा है. पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियों पर अपने नागरिकों के दबाव को लेकर चिंता बढ़ गई है, खासकर जब भारत पश्चिमी नदियों के पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने की बात कर रहा है.
अब भारत को किशनगंगा, रतले और पकाल दुल जैसे हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स पर पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय मंचों पर किए जाने वाले विरोध की कोई परवाह नहीं करनी पड़ेगी. इन तीनों प्रोजेक्ट्स का संयुक्त प्रभाव भारत को पाकिस्तान के खिलाफ एक मजबूत रणनीतिक दबाव बनाने की ताकत देता है. पहलगाम में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमले के बाद भारत ने खेल के नियम ही बदल दिए हैं- अब पाकिस्तान की सेना की गलती का खामियाजा वहां के आम नागरिकों को भुगतना पड़ेगा.
सुरंग से मोड़ दिया झेलम का पानी
भारत ने पहले ही किशनगंगा प्रोजेक्ट के जरिये झेलम नदी का पानी 23 किलोमीटर लंबी सुरंग से मोड़ दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा में इस प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया था. उसी दिन मोदी ने पकाल दुल पावर प्रोजेक्ट का शिलान्यास भी किया था, जो जम्मू-कश्मीर का सबसे बड़ा 1000 मेगावाट का हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट है और पहला जल संचयन (स्टोरेज) प्रोजेक्ट भी है. 167 मीटर ऊंचा पकाल दुल प्रोजेक्ट भारत को सिर्फ पानी के इस्तेमाल का ही नहीं बल्कि उस पर असली नियंत्रण का भी अधिकार देगा. यह प्रोजेक्ट 2026 के मध्य तक तैयार हो जाएगा.
पाकिस्तान की एक और बड़ी चिंता है जम्मू-कश्मीर में बन रहा 850 मेगावाट का रतले हाइड्रो प्रोजेक्ट. पिछले साल इसमें एक अहम काम हुआ- चेनाब नदी का पानी सुरंगों के जरिये मोड़ दिया गया, जिससे बांध क्षेत्र को खाली कर वहां खुदाई और बांध निर्माण का कार्य शुरू हो सका.
भारत अब तेजी से बना सकता है बांध
अब भारत इस बांध का निर्माण पाकिस्तान की आपत्तियों के बावजूद तेजी से कर सकता है. पाकिस्तान ने रतले प्रोजेक्ट के डिजाइन, खासकर उसके स्पिलवे की ऊंचाई और पानी के स्तर को लेकर आपत्ति जताई थी. लेकिन मोदी सरकार ने 2021 में 5,282 करोड़ रुपये की लागत से इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी.
भारत और पाकिस्तान के बीच आखिरी बार जून 2023 में सिंधु जल संधि को लेकर सालाना बैठक हुई थी, जब एक पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल भारत आया था और किश्तवाड़ में विभिन्न बांध स्थलों का दौरा किया था. पाकिस्तान ने तब भी किशनगंगा, रतले और पकाल दुल प्रोजेक्ट्स का यह कहते हुए विरोध किया था कि ये संधि का उल्लंघन करते हैं.
लेकिन अब 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान के बीच वर्ल्ड बैंक की मध्यस्थता से हुई, वह संधि इतिहास बन चुकी है.